दीपावली/दिवाली

दीपावली/Deepawali


दिवाली:- दिन/तारीख, इतिहास और प्रमुख आकर्षण -

          दीपावली हिन्दु धर्म का प्रमुख त्यौहार है यह पांच दिवसीय पर्व जो धनतेरस से भाईदूज पांच दिनों तक चलता है दीपावली अंधकार पर प्रकाश की विजय को दर्शाता है। प्रत्येक साल कार्तिक पूर्णिमा माह की अमावस्या के दिन दीपावली माँ लक्ष्मी और सरस्वती और गणेश जी की पूजा का विधान है दीपावली के दिन श्रीराम जी अयोध्या वापस आये थे भगवान श्रीराम जी की अयोध्या वापस आने की खुशी में दीपावली का त्यौहार मनाया जाता है दीपावली में अयोध्यावासियों ने भगवान श्री राम जी का स्वागत दिये जलाकर किया था। सुख समृद्धि की कामना के लिए दीपावली के त्यौहार से बढ़कर कोई त्यौहार नहीं है।







इन पांच दिनों के दीवाली उत्सव में विभिन्न अनुष्ठानों का पालन किया जाता है और देवी लक्ष्मी के साथ कई अन्य देवी देवताओं की पूजा की जाती है लेकिन दीवाली पूजा के दौरान देवी लक्ष्मी जी सबसे मत्वपूर्ण देवी होती हैं इस पांच दिनों के उत्सव में अमावस्या का दिन सबसे महत्वपूर्ण होता है। इस उत्सव को अनेकों नाम से जाना जाता है इस दिन लक्ष्मी पूजा करने के लिए सबसे शुभ समय सूर्यास्त के बाद का माना जाता है सूर्यास्त के बाद के समय को प्रदोष कहा जाता है प्रदोष के समय व्याप्त अमावस्या तिथि दीवाली पूजा के लिए विशेष महत्वपूर्ण होती है। अतः दीवाली पूजा का दिन अमावस्या और प्रदोष के इस योग पर ही निर्धारित किया जाता है। इसलिए प्रदोष कल का मुहूर्त लक्ष्मी पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ होता है और यह मुहूर्त एक घड़ी के लिए भी उपलब्ध हो तो इस पूजा के लिए इसे प्राथमिकता दी जानी चाहिए पुराणों के अनुसार कार्तिक अमावस्या की अंधेरी रात्रि में महालक्ष्मी जी स्वयं इस भूलोक पर आतीं हैं और हर घर में विचरण करतीं हैं इस दौरान जो घर हर प्रकार से स्वच्छ और प्रकाशवान हो वहां पर अंश रूप में ठहर जाती हैं।





दीपावली को हर जगह मनाने के लिए अलग अलग-अलग कारण हैं:-




१ साउथ इंडिया की कई जगहों पर नरकासुर के वध के कारण यह त्यौहार मनाया जाता है।




२ नरकासुर को विशेष वरदान यह प्राप्त था कि उसकी मृत्यु उसकी माँ के सिवा अन्य कोई नहीं कर सकता था। 




३ श्री कृष्ण भगवान द्वारिकाधीस की तीसरी पत्नी सत्यभामा को नरकासुर की माता माना गया था और उन्होंने श्री कृष्ण के साथ मिलकर नरकासुर का वध किया था।






४ महाभारत के अनुसार जब पांडव१२ वर्ष के वनवास के बाद वापस हस्तिनापुर लौटे थे तो वो दिन दिवाली का ही था और हस्तिनापुर के निवासियों ने पूरे नगर को सजाकर दिए जलाकर सजाया था।  






दिवाली पर इस साल बन रहा है दुर्लभ संयोग बेहद शुभ जानें तरीख और शुभ मूहूर्त :




दीवाली कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को दीपों का पर्व दिवाली मनाया जाता है। इस साल गुरुवार ४ नवंबर २०२१ को ये त्यौहार मनाया जायेगा। दीवाली पर माँ लक्ष्मी और गणेश जी का पूजन करने का विधान है। इस साल एक ही राशि में चार ग्रहों के होने से दीवाली पर दुर्लभ संयोग भी बन रहा है ज्योतिषाचार्य के अनुसार चार ग्रह एक ही राशि में हैं यानि एक ही राशि में इन चारों ग्रहों की युति है इस वज़ह से यह दीवाली लोगों के लिए अत्यंत शुभ रहेगी माँ लक्ष्मी और गणेशजी का आशीर्वाद प्राप्त होगा और जातकों को लाभ ही लाभ होगा।






दीपावली शुभ मुहूर्त




दिवाली ४ नवंबर २०२१ गुरुवार अमावस्या तिथि प्रारंभ ४ नवम्बर २०२१ को प्रातः ०६:०३ बजे से 







अमावस्या तिथि समाप्त ०५ नवम्बर २०२१ को प्रातः ०२:४४ बजे तक 




दीपावली लक्ष्मी पूजा मुहूर्त शाम ०६:०९ से ०८:२१ मिनट तक




अवधि १ घंटे ५५ मिनट 







दीपावली ५ दिन त्यौहार:-


१ धनतेरस २ नवम्बर २०२१ मंगलवार 


२ छोटी दीपावली ३ नवम्बर २०२१ बुधवार


३ दीपावली लक्ष्मी पूजन ४ नवम्बर २०२१ गुरुवार 


४ पड़वा ५ नवम्बर २०२१ शुक्रवार 


५ भाईदूज ६ नवम्बर २०२१ शनिवार 





दीपावली त्यौहार २०२१ से २०२७ तक 




पर्व वर्ष             दिन                दिनांक 




२०२१             गुरुवार             ४ नवम्बर 




२०२२             सोमवार            २४ अक्टूबर 




२०२३              रविवार            १२ नवम्बर 




२०२४              शुक्रवार             १ नवम्बर 




२०२५              मंगलवार            २१ अक्टूबर 




२०२६               रविवार              ०८ नवम्बर 




२०२७               शुक्रवार             २९ अक्टूबर 




दिवाली तो हम कई सालों से मना रहे हैं हम इतने वर्षों में यह भी जान गये हैं कि श्रीराम जी की अयोध्‍या में वापसी के जश्‍न के कारण दिवाली मनाई जाती है।






 आज इस आर्टिकल में यह जानेंगे कि किस तरह भारत देश के अलग-अलग कोनों में दिवाली मनाने की अलग-अलग वजह मानी जाती है इन सभी अलग-अलग विश्‍वास के साथ अलग-अलग कहानियां भी जुड़ी हुई हैं।






हमारी जनरेशन इन दिनों दिवाली और भाई दूज जैसे त्‍यौहार मनाती तो है, पर इनसे जुड़ी हुई कहानियां खो सी गई हैं।






इस त्यौहार से जुड़ी हुई कहानियां आपको बतायेंगे जो शायद ज्ञात न हो:-




 साउथ इंडिया की कई जगहों पर दिवाली को नरकासुर के वध के कारण मनाया जाता है नरकासुर एक राक्षस हुआ करता था जिसने इन्‍द्र की मॉं के ताज को चुरा लिया था। इन्‍द्र परेशान होकर श्रीकृष्ण के पास जाते हैं और उनसे प्रार्थना करते हैं कि उनको इस दुविधा से निकालें इसके बाद श्री कृष्ण सत्‍यभामा के साथ मिलकर स्‍वर्ग जाते हैं और नरकासुर का वध करने के लिए तैयार रहते हैं पर तभी उन्‍हें पता चलता है कि नरकासुर को वरदान मिला हुआ है कि उनको सिर्फ उनकी मॉं के द्वारा ही मारा जा सकता है और ऐसे में श्री कृष्ण को पता चलता है कि ऐसा माना जाता है कि सत्‍यभामा कोई और नहीं बल्‍कि नरकासुर की मॉं ही थी। नरकासुर सत्यभामा के हांथों मारा जाता है और श्री कृष्ण खोया हुआ ताज वापस इन्‍द्र की मॉं को दे देते हैं इस तरह बुराई पर अच्‍छाई की जीत के रूप में महान दिवाली मनाई जाती है।




 देश के बहुत बडे हिस्‍से में दिवाली को मनाने की वजह श्रीराम जी की अयोध्‍या वापसी है। 14 वर्षों तक वनवास और रावण‍ का वध् ‍ करके श्रीराम जी,सीता और लक्ष्‍मण के साथ अयोध्‍या लौटते हैं उनके लौटने की खुशी में अयोध्‍या को सजाया जाता है इसी दिन से भारत देश में दिये लगाकर दिवाली मनाई जाने की प्रथा शुरू हुई।




 महाभारत के अनुसार जब पाण्‍डव भाई 12 वर्षों के बाद वापस हस्तिनापुर लौटे थे तो वह दिन दिवाली का ही था उस दिन हस्तिनापुर के वासियों ने उनके लौटने की खुशी‍ में पूरे नगर में सजावट की थी और दिये लगाकर पूरे शहर को रोशन किया था ।




 ऐसा कहा जाता है कि एक राजा था और उसके एक बेटा था जिसके लिये यह कहा गया था कि वह अपनी शादी के एक दिन बाद मारा जायेगा। राजा आखिर में अपने बेटे की शादी करा देते हैं और फिर उसकी पत्‍नी को इसके बारे में पता लग जाता है जिस वजह से उनकी पत्‍नी उनकी जान बचाने के लिए सोचविचार करने लगती है रात को जब यमराज उनके पति को लेने के लिए आते हैं तो वह पूरे घर को लाइटस और दियों से सजा देती है और अपने घर का सारा सोना घर के बाहर रख देती है यमराज उनके पति को लेने के लिए सांप के रूप में आते हैं तो सोने और लाइटस की चमक के कारण उन्‍हें दिखना बन्‍द हो जाता है और वह उसके पति को लिए बिना ही लौट जाते हैं इस प्रकार वह अपने पति की जान बचाने में सफल रहती हैं। वह घर के बाहर यमराज को रोकने के लिए एक दिया जलाती है जिसे यामा दीपक के नाम से जाना जाता है।




 यामी और यमा जुड़वा भाई बहिन थे जो एक दूसरे के बेहद घनिष्‍ठ थे, ऐसा कहा जाता है कि अदिति जो यामी और यमा की मॉं थी उन्‍हें सूर्य की गर्मी नहीं लगती थी और इस कारण वे खुद से छाया का निर्माण करती रहीं इस बारे में सूर्य को नहीं पता था। एक दिन मतभेद के कारण छाया श्राप देती है और यमा की मृत्यु हो जाती है यमा धरती पर पहले व्‍यक्‍ति थे जिनकी मृत्यु हुई थी और मृत्यु के बाद वह भगवान में बदल गये थे। इसके बाद से ही यमा हर साल एक बार वापस आते हैं अपनी बहिन यामी से मिलने और इस प्रथा के कारण भाई दूज का त्‍यौहार मनाया जाता है।




 दिवाली का दिन सिक्ख कम्यूनिटी के लिए बहुत स्‍पेशल होता है इस दिन तीसरे सिक्‍ख गुरू अमरदास ने यह तय किया था कि दिवाली के दिन सभी सिक्ख अपने गुरू की कृपा व आर्शावाद लेने आ सकेंगे और वर्ष १६१९ को दिवाली के दिन ही गुरू हर गोविन्‍द जी को रिहाई मिली थी जिस कारण कम्यूनिटी में जश्‍न मनाया गया था इसके अलावा १५७७ में दिवाली के दिन ही गोल्‍डन टेम्‍पल की नींव रखी गई थी।




 दिवाली को मनाई जाने की एक वजह यह भी है कि इसे हिन्‍दूज्‍म के अनुसार न्‍यूईयर की शुरूआत के रूप में देखा जाता है‌। इस दिन से विजिनेसमेन अपने सभी कर्जो और डेब्‍स को चुकाकर एक नई शुरुआत  करते   


 इन पांच दिनों के दीवाली उत्सव में विभिन्न अनुष्ठानों का पालन किया जाता है और देवी लक्ष्मी के साथ कई अन्य देवी देवताओं की पूजा की जाती है लेकिन दीवाली पूजा के दौरान देवी लक्ष्मी जी सबसे मत्वपूर्ण देवी होती हैं इस पांच दिनों के उत्सव में अमावस्या का दिन सबसे महत्वपूर्ण होता है इस उत्सव को अनेको नाम से जाना जाता है इस दिन लक्ष्मी पूजा करने के लिए सवसे शुभ समय सूर्यास्त के बाद का माना जाता है सूर्यास्त के बाद के समय को प्रदोष कहा जाता है प्रदोष के समय व्याप्त अमाववस्य तिथि दीवाली पूजा के लिए विशेष महत्वपूर्ण होती है अतः दीवाली पूजा का दिन अमावस्या और प्रदोष के इस योग पर ही निर्धारित किया जाता है इसलिए प्रदोष कल का मुहूर्त लक्ष्मी पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ होता है और यह मुहूर्त एक घड़ी के लिए भी उपलब्ध हो तो इस पूजा के लिए इसे प्राथमिकता दी जानी चाहिए पुराणों के अनुसार कार्तिक अमावस्या की अंधेरी रात्रि में महालक्ष्मी जी स्वयं इस भूलोक पर आतीं हैं और हर घर में विचरण करतीं हैं इस दौरान जो घर हर प्रकार से स्वचछ और प्रकाशवान हो वहां पे अंश रूप में ठहर जाती हैं।










दीपावली को हर जगह मनाने के लिए  अलग अलग कारण हैं




१ साउथ इंडिया की कई जगहों पर नरकासुर के वध के कारण यह त्यौहार मनाया जाता है।




२ नरकासुर को विशेष वरदान यह प्राप्त था कि उसकी मृत्यु उसकी माँ के सिवा अन्य कोई नहीं कर सकता था। 




३ श्री कृष्ण भगवान द्वारिकाधीस की तीसरी पत्नी सत्यभामा को नरकासुर की माता माना गया था और उन्होंने श्री कृष्ण के साथ मिलकर नरकासुर का वध किया था।




४ महाभारत के अनुसार जब १२ वर्ष के वनवास के बाद वापस हस्तिनापुर लौटे थे तो वो दिन दिवाली का ही था और हस्तिनापुर के निवासियों ने पूरे नगर को सजाकर दिए जलाकर सजाया था।  




दिवाली इस साल बन रहा है दुर्लभ संयोग बेहद शुभ  




दीवाली कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को दीपो का पर्व दिवाली मनाया जाता है इस साल गुरुवार ४ नवंबर २०२१ को ये त्यौहार मनाया जायेगा दीवाली पर माँ लक्ष्मी और गणेश जी का पूजन करने का विधान है इस साल एक ही राशि में चार ग्रहों के होने से दीवाली पर दुर्लभ संयोग भी बन रहा है ज्योतिषाचार्य के अनुसार चार ग्रह एक ही राशि में हैं यानि एक ही राशि में इन चारों ग्रहों की युति है इस वज़ह से यह दीवाली लोगों के लिए अत्यंत शुभ रहेगी माँ लक्ष्मी और गणेशजी का आशीर्वाद प्राप्त होगा और जातकों को लाभ ही लाभ होगा।




अंत में यह कहा जा सकता है, कि दिवाली भारत देश के सबसे बड़े त्‍यौहारों में से एक है और देश के अलग अलग कोनों में मनाये जाने की अलग-अलग वजह हैं।





वजह कुछ भी हों पर यह कहना पूरी तरह से सही है कि दिवाली त्यौहार देश ‍ की बहुत बड़ी जनता को एक जुट लाकर खड़ा करती है । 



































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